बिजलीकर्मियों की हड़ताल की तैयारी: 29 मई से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार का ऐलान
लखनऊ, 26 मई 2025: उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के कर्मचारी और अभियंता पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में 29 मई से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू करने की तैयारी में हैं। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के नेतृत्व में यह आंदोलन निजीकरण की प्रक्रिया को रद्द करने की मांग को लेकर तेज हो गया है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि निजीकरण से न केवल कर्मचारियों के हित प्रभावित होंगे, बल्कि उपभोक्ताओं को भी महंगी बिजली और खराब सेवा का सामना करना पड़ेगा।
कर्मचारियों का रुख: निजीकरण के खिलाफ आर-पार की लड़ाई
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने कहा, “पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन निजीकरण की जिद पर अड़ा है और आंकड़ों में हेराफेरी कर नुकसान को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहा है। यह निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की साजिश है।” उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने निजीकरण का फैसला वापस नहीं लिया, तो 29 मई से पूरे प्रदेश में कार्य बहिष्कार शुरू होगा, जिसमें देशभर के 27 लाख बिजली कर्मचारी समर्थन देंगे।
संघर्ष समिति के मीडिया सचिव अंकुर पाण्डेय ने बताया कि 21 मई से 28 मई तक हर दिन दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक प्रदेश के सभी जिलों और परियोजनाओं में विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। “हमने सरकार और प्रबंधन को कई बार अपनी मांगें रखीं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब हमारे पास हड़ताल ही अंतिम रास्ता है,” उन्होंने कहा।
चरणबद्ध आंदोलन की रणनीति
कर्मचारी संगठनों ने चरणबद्ध आंदोलन की रूपरेखा तैयार की है:
16 अप्रैल से 30 अप्रैल: जन-जागरण पखवाड़ा, जिसमें सांसदों और विधायकों को निजीकरण के खिलाफ ज्ञापन सौंपे गए।
1 मई: मजदूर दिवस पर सभी जिलों में बाइक रैलियां निकाली गईं।
2 से 9 मई: शक्ति भवन मुख्यालय पर क्रमिक अनशन, जिसमें उत्तरी भारत के अन्य राज्यों के कर्मचारी भी शामिल हुए।
14 से 19 मई: नियमानुसार कार्य आंदोलन, जिसमें कर्मचारियों ने अतिरिक्त ड्यूटी से इनकार किया।
21 से 28 मई: तीन घंटे का दैनिक कार्य बहिष्कार और विरोध प्रदर्शन।
29 मई से: अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार।
उपभोक्ताओं पर क्या होगा असर?
कर्मचारी संगठनों का दावा है कि निजीकरण से बिजली की दरें बढ़कर 15 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच सकती हैं। साथ ही, सरकारी क्षेत्र में मिलने वाली सुविधाएं, जैसे समय पर फॉल्ट सुधार और उपभोक्ता शिकायत निवारण, निजी कंपनियों के आने पर प्रभावित हो सकता है। आगरा मॉडल का हवाला देते हुए कर्मचारियों ने कहा कि निजीकरण के बाद वहां उपभोक्ताओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।
सरकार और प्रशासन की तैयारी
हड़ताल की आशंका को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार और पावर कॉरपोरेशन ने वैकल्पिक व्यवस्थाएं शुरू कर दी हैं। मुरादाबाद, मिर्जापुर और देवरिया जैसे जिलों में जिलाधिकारियों ने बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बैठकें की हैं। अन्य विभागों के इलेक्ट्रिकल कर्मचारियों और निजी सहयोगियों का डाटा तैयार किया जा रहा है ताकि हड़ताल के दौरान आपात स्थिति से निपटा जा सके।
हालांकि, सरकार ने पहले ही उत्तर प्रदेश अत्यावश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम के तहत अगले छह महीनों के लिए हड़ताल पर रोक लगा दी है। इसके बावजूद, कर्मचारी संगठनों का कहना है कि वे कानूनी दायरे में रहकर अपना विरोध दर्ज कराएंगे।
अन्य राज्यों का समर्थन
नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स ने घोषणा की है कि 29 मई को देशभर के बिजली कर्मचारी उत्तर प्रदेश के आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन करेंगे। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, और पंजाब जैसे राज्यों के कर्मचारी संगठनों ने भी यूपी के बिजलीकर्मियों के साथ एकजुटता दिखाने का ऐलान किया है।
कर्मचारियों की मांगें
पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों का निजीकरण रद्द करना।
पावर कॉरपोरेशन के घाटे के आंकड़ों की पारदर्शी जांच।
ट्रांजेक्शन एडवाइजर की नियुक्ति रद्द करना।
कर्मचारियों के खिलाफ हड़ताल के दौरान की गई कार्रवाइयों को वापस लेना।
आम जनता के लिए चेतावनी
संघर्ष समिति ने उपभोक्ताओं से अपील की है कि वे इस आंदोलन का समर्थन करें, क्योंकि निजीकरण से बिजली की दरें और सेवा की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। दूसरी ओर, प्रशासन का कहना है कि वह बिजली आपूर्ति को निर्बाध रखने के लिए हरसंभव प्रयास करेगा।
आगामी 29 मई को होने वाली इस हड़ताल का असर प्रदेश की बिजली व्यवस्था पर कितना पड़ेगा, यह देखना बाकी है। लेकिन कर्मचारियों और सरकार के बीच तनातनी से यह साफ है कि यह मुद्दा जल्द सुलझने वाला नहीं है।