यूपी: बिजली निजीकरण के विरोध में 29 मई से बिजली कर्मियों का अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार

बिजलीकर्मियों की हड़ताल की तैयारी: 29 मई से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार का ऐलान

यूपी: बिजली निजीकरण के विरोध में 29 मई से बिजली कर्मियों का अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार

लखनऊ, 17 मई 2025: उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के कर्मचारी और इंजीनियर, विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले, 29 मई 2025 से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार शुरू करने जा रहे हैं। यह कदम पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PVVNL) और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में उठाया जा रहा है। कर्मचारियों का दावा है कि निजीकरण से न केवल उनकी नौकरियां खतरे में पड़ेंगी, बल्कि किसानों और आम उपभोक्ताओं को भी महंगी बिजली का बोझ उठाना पड़ेगा। इस आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिल रहा है, और 26 जून 2025 को राष्ट्रव्यापी हड़ताल की भी योजना है।

विरोध की वजह

उत्तर प्रदेश सरकार ने PVVNL और DVVNL के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को लागू करने की योजना बनाई है, जिसका उद्देश्य इन वितरण कंपनियों (DISCOMs) के 1.1 लाख करोड़ रुपये के कथित नुकसान को कम करना है। हालांकि, कर्मचारी यूनियनों का कहना है कि यह आंकड़ा उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) द्वारा गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। उनका तर्क है कि अगर बकाया राशि (1.15 लाख करोड़ रुपये) वसूल की जाए, तो ये कंपनियां लाभ में होंगी।

निजीकरण का विरोध पिछले कई महीनों से चल रहा है। अप्रैल 2025 में, कर्मचारियों ने 16 से 30 अप्रैल तक जन जागरण अभियान चलाया, जिसमें सभी जिलों में रैलियां और बिजली पंचायतें आयोजित की गईं। 1 मई को बाइक रैलियों और आठ दिन की भूख हड़ताल की योजना भी बनाई गई थी। हाल ही में, कर्मचारियों ने निजीकरण के खिलाफ सभी सांसदों और विधायकों को ज्ञापन सौंपने की रणनीति बनाई।

कर्मचारियों की मांगें

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति और नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स (NCCOEEE) ने निम्नलिखित मांगें रखी हैं:

निजीकरण पर रोक: PVVNL और DVVNL के निजीकरण प्रस्ताव को पूरी तरह रद्द किया जाए।

नौकरी सुरक्षा: 27,000 स्थायी कर्मचारियों और 50,000 संविदा कर्मचारियों की नौकरियों को सुरक्षित किया जाए।

पारदर्शिता: UPPCL प्रबंधन पर कॉरपोरेट घरानों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कर्मचारियों ने पारदर्शी प्रक्रिया की मांग की है।

बिजली दरों पर नियंत्रण: कर्मचारियों का कहना है कि निजीकरण के बाद बिजली की दरें तीन गुना तक बढ़ सकती हैं, जैसा कि मुंबई (17-18 रुपये प्रति यूनिट) और दिल्ली (8-10 रुपये प्रति यूनिट) में देखा गया है।

प्रबंधन में सुधार: कर्मचारियों ने सुझाव दिया है कि IAS अधिकारियों के बजाय विशेषज्ञ इंजीनियरों को प्रबंधन की जिम्मेदारी दी जाए।

आंदोलन की रणनीति

संघर्ष समिति ने निजीकरण के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन की रूपरेखा तैयार की है:

29 मई से कार्य बहिष्कार: सभी बिजली कर्मचारी और इंजीनियर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएंगे, जिससे बिजली आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।

जन जागरण: कर्मचारी आम जनता, विशेष रूप से किसानों और ग्रामीण उपभोक्ताओं को निजीकरण के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक कर रहे हैं।

राष्ट्रीय समर्थन: NCCOEEE ने 26 जून 2025 को 27 लाख बिजली कर्मचारियों के साथ राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा की है। मार्च में चार बड़ी रैलियां और अप्रैल-मई में प्रांतीय सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे।

कानूनी कार्रवाई: कर्मचारी यूनियनों ने निजीकरण के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है, जिसके कारण यूनियन नेताओं पर हड़ताल की कार्रवाई सीमित है।

सरकार का रुख

उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि निजीकरण से DISCOMs की दक्षता और सेवा गुणवत्ता में सुधार होगा। UPPCL ने दावा किया है कि कर्मचारियों की नौकरियों और सेवा शर्तों को सुरक्षित रखा जाएगा, और निजी कंपनियों के साथ 49% हिस्सेदारी साझा की जाएगी। हालांकि, कर्मचारियों ने इसे “छिपा हुआ निजीकरण” करार देते हुए खारिज कर दिया है।

पिछले अनुभवों में, 2020 और 2023 में कर्मचारियों की हड़तालों ने सरकार को कुछ मांगें मानने के लिए मजबूर किया था, जैसे कि निजीकरण प्रस्ताव वापस लेना और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाइयां रद्द करना।

संभावित प्रभाव

बिजली आपूर्ति पर असर: यदि 29 मई से हड़ताल शुरू होती है, तो पूर्वी और दक्षिणी उत्तर प्रदेश में बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है, जैसा कि 2020 में देखा गया था।

उपभोक्ताओं पर बोझ: कर्मचारियों का दावा है कि निजीकरण से बिजली दरें बढ़ेंगी, जिसका सबसे अधिक असर किसानों और गरीब उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।

राजनीतिक निहितार्थ: निजीकरण का यह मुद्दा 2027 के विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि विपक्षी दल इसे जनविरोधी नीति के रूप में पेश कर सकते हैं।

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